श्री कृष्णा और गोवर्धन पर्वत – नन्द बाबा के यहाँ सुबह से ही लोगो की भीड़ थी सबका आना जाना लगा था वृन्दावनवासी हर साल इंद्र देवता को खुश करने के लिए यज्ञ करते है ,लेकिन कृष्ण को ये बात सही नहीं लगी। कृष्ण ने सोचा कर्म ही तो मनुष्य की पूजा है हमे कर्मो से जुडी चीजों और प्रतीकों की पूजा करनी चाहिए ,हमलोगो के लिए खेत -खलियान ,बैल ,हल,गाय ,बछड़े आदि की पूजा करनी चाहिए। क्यों न आज ही इंद्रा की जगह गाय -बछड़ो और गोवर्धन पर्वत की पूजा करना शुरू कर दे।
कृष्ण ने वृन्दावनवासियो से ये साड़ी बाते कहि फिर नन्द ने सभी वृन्दावन वालो से पूजा के विषय में राय पूछा जो कृष्ण ने कहा तब गोपो ने कहा हाँ -हाँ आज से हम सब गोवर्धन पर्वत और गाय -बछड़ो की पूजा करेंगे। आज का यज्ञ इंद्र की जगह इन लोगो को ही समर्पित होगा। उसके सभी लोगो ने मिलकर ये सारी बात पुरोहित के सामने रखी पुरोहित को भी कृष्ण का विचार उचित लगा। फिर सभी वृन्दावनवासी पूजा सामग्री का सामान लेकर गोवर्ध पर्वत की चल दिए। वहां पहुंचकर सभी ने खूब मन से गाय -बछड़े और गोवर्धन पर्वत की पूजा की।
भगवान कृष्णा ने गोवर्धन पर्वत कैसे उठाया ?
गोवर्धन पर्वत कहाँ पर है ?
गोवर्धन पर्वत किसका पुत्र है ?
गोवर्धन पर्वत की कहानी क्या है ?
कृष्ण के मन एक विचार आया इन भोले -भाले वृन्दावनवासियो ने मेरे कहने पर पूजा की क्यों न इनकी पूजा पूर्ण रूप से सफल हुई इनको विश्वास दिला देते है फिर कृष्ण ने अपना दूसरा रूप लेकर गोवर्धन पर्वत पर चढ़ गए और सभी वृन्दावन वासी को बोले आप लोगो की पूजा रूप से सफल हुई है मैं आप सभी की पूजा से खुश हु मैं आप सभी लोगो को आशीर्वाद देता हु कि मेरा आशिर्वाद हमेशा आप लोगो के साथ रहेगा।
गोवर्धन पर्वत को प्रकट होकर देख वृन्दावनवाशियो की ख़ुशी की सीमा नहीं रही कृष्ण ने बोला देखो स्वयं गोवर्धन पर्वत देवता आकर हम सबलोगो को आशीर्वाद दे रहे है ,अतः हमे इनसे आशीर्वाद लेना चाहिए।
वृन्दावनवासी बहुत ख़ुशी -ख़ुशी अपने नगर लौट रहे थे। उधर इंद्र देवता को पता चला की वृन्दावन वाशियो ने उनकी पूजा नहीं की है वे बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने पुरे वृन्दावन में आंधी तूफ़ान और बारिश करने लगे। ये सब नगरवासी देख डर गए क्योकि उनके घरो में भी पानी आ गया था। फिर सभी वृन्दावन वासी भागते हुए कृष्ण के पास आय और बोले कन्हैया अब तुम ही पुरे नगरवासियो को बचा सकते है कृष्ण को पता चल गया था की ये सब कुछ किया धराया इंद्र का है कृष्ण इंद्र पर बहुत क्रोधित हुए। कृष्ण ने वृदावनवाशियो से कहा आप सब घबराइए नहीं मेरे साथ चलिए कृष्ण सभी को गोवर्धन पर्वत लेकर आ गए और वहां अपने बाए हाथ के सबसे छोटी ऊँगली से गोवर्धन पर्वत को उठाया सभी लोगो को बोले की इस पर्वत के निचे आ जाए। सभी नगर वाशी पर्वत के निचे आ गए।
पुरे 7 दिनों तक लगातार आंधी -बारिश होती रही तब तक सभी नगर वासी उसी पर्वत के निचे बैठे रहे। इंद्र ने सोचा की अब तक तो सारे वृन्दवन्वासी का श्मशान बन गया हो गया होगा चलो देखते थे इंद्र ने देखा सभी लोग उस पर्वत के निचे है और सुरक्षित है उनके अपने किये हुए पर पछतावा हुआ बोले कृष्ण जी तो स्वयं विष्णु का अवतार है कृष्ण जी से मन ही मन छमा मांगी कृष्ण जी ने इंद्रा देवता को क्षमा कर दिया।
उसके बात बारिश बंद हो गई पुर नगर को कृष्ण जी ने पहले जैसा बना दिया था। सभी ख़ुशी अपने घरो को लौट चले।
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