Narad Muni Stories- कंस अरिष्टासुर के लौटने का प्रतीक्षा कर रहा रहा था। तभी एक गुप्तचर आके बोला महाराज कृष्णा ने अरिष्टासुर का वध कर दिया। यह खबर सुनकर कंस चिंतित हो गया वह बेचैनी से अपने महल की ओर घूमने लगा और सोचने लगा कृष्ण सच में कोई मायावी शक्ति सम्पन बलाक है। उसे मारने के लिए कोई अन्य उपाए सोचना होगा।कंस इसी चिंता में डुबा हुआ था तभी नारद जी वहा आ पहुंचे कंस से बोले राजन ऐसा लग रहा है ,तुम किसी गंभीर चिंता में डूबे हुए हो और तुमने अपने सभी असुरो को आजमाकर देख लिया ,मगर उनमे से कोई भी तुम्हारे शत्रु का बाल भी बाका नहीं कर सका ,उल्टा सभी कृष्ण के हाथो मारे गए।
फिर भी मैं यही कहूंगा राजन की अब भी तुम्हे अपने सत्रु पर विजय पाने की कोशिश छोड़नी नहीं चाहिए। नारद की बात सुनकर कंस बोला ,”मुनिवर मैंने देवकी को जीवित छोड़कर बहुत बड़ी भूल की है मुझे उस समय वासुदेव की बातो में नहीं आना चाहिए था मैं अभी जाकर दोनों को मार देता हु। तभी नारद जी ने कहा धैर्य से काम लो। देवकी -वासुदेव के जीवित रहने या न रहने से तुम्हारे जीवन या मिर्त्यु का अब कोई सम्बन्ध नहीं है क्योकि अब उनकी आठवीं संतान हो चुकी है। कृष्ण ही तुम्हारा शत्रु है। इसलिए तुम्हारी योजना केवल कृष्ण के हाथो अपने विनाश को रोकने की होनी चाहिए। नारद जी इतना कहकर चले गए।
उनके जाने के बाद कंस ने अपने सैनिको को आदेश देते हुए कहा ,जाओ जाकर देवकी और वासुदेव को फिर से बंदीगृह में दाल दो। इस प्रकार कंस ने इन दोनों को बंदीगृह में डाल दिया
फिर कंस ने अपने महावत को बुलाकर कहा ,” इस यज्ञ में मेरा सबसे बड़ा शत्रु कृष्ण और बलराम आएगा उन दोनों के महल में प्रवेश करने से पहले ही तुम उन्हें महल के दवार पर तैनाती अति बलशाली से द्वार पर ही कुचलवा देना।
इसके बाद कंस ने मंत्रियो की बैठक बुलाई और मंत्रियो से कहा मैं यज्ञ में स्वयं बैठूंगा। मुझे हर हाल में शिव को खुश करना है। इसलिए धनुयज्ञ की तैयारी में कोई कमी न रह पाए।
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